
खुद को खोकर क्या पायेगा?
भागा हु मै खुद से दूर,
खुद ही से मै लड़ा हु,
किसी से कम हु मै,
यह सोचकर सारी सारी रात जगा हु।
हर मोड़ पर किसी की तर्रकी,
किसीका वर्चस्व देखकर जला हु,
फिर उस जलन को आग बनाकर,
एक जूनून से आगे बढ़ा हु।
उसकी तरह बनूँगा मै,
शायद उससे बेहतर करूँगा मै,
इस दौड़ मे इतना खो गया,
की अब एक अनजान चौराहे पर खड़ा हु।
दिल अब थक चूका है,
मन बदल चूका है,
आवाज़ अब एक है दोनों की,
कुछ और बनने के चक्कर में, अपना वजूद खो गया हु।
ये देखा देखि अनंत है,
कह गए साधु संत है,
तुझसा कोई और जग में नहीं है,
तू जैसा भी है वैसे ही सही है।
हौंसला रख, धीरज रख थोड़ा,
तेरा भी वक़्त आएगा,
अब भी नहीं समझा तो,
सब पाकर भी कुछ न पाएगा।