बेवजह
ज़िन्दगी से बहुत सवाल है,
सारे जवाब होने का ढोंग करता हु बेवजह।
दिल पीछे छोड़ आया हु,
फिर भी प्यार ढूंढ़ता हु बेवजह।
गिरता हु, संभालता हु,
थोड़ी दूर तक दौड़कर, फिर थोड़ा सा चलता हू।
मंज़िल बदलती रहती है,
रफतार बढ़ाता हू बेवाजेह।
सुकून ज़िन्दगी की छोटी खुशियों में है,
ख्वाब बड़े देखता हू बेवजह।
हर निर्णय के पीछे जब वजह है,
तोह जीना क्यों भूल गया हू मै बेवजह?