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राही हूँ मैं

राही हूँ मैं

ना मंज़िल का पता हैं,
ना साथ किसी का हैं,
नहीं जानता क्या गलत हैं क्या हैं सही,
रही हूँ मैं पर राह नहीं!

छोड़ आया हूँ उस दुनिया को,
जहां मुझे फ़िज़ूल का वक़्त हो,
यारों को भी छोड़ा वही,
राही हूँ मैं पर राह नहीं!

एक ज्वाला सी हैं मन के अंदर,
पाल रहा हूँ सपनों का समंदर,
कुछ करने की चाह लेकर चला हूँ कहीं,
राही हूँ मैं पर राह नहीं!

है दुनिया बदलने की चाहत,
काटों से सजे हैं यह पथ,
समझाता हूँ खुद को पर चैन नहीं,
राही हूँ मैं पर राह नहीं!

2 Comments
  • aditya tiwari

    This is iconic, so ravishingly written . Justified to the fullest .

    August 16, 2016 at 12:36 pm
  • aditya tiwari

    This is iconic, so ravishingly written . Justified to the fullest .

    August 16, 2016 at 12:37 pm